क्लाउड सीडिंग: बादलों से बारिश कराने की विज्ञान की ताकत

जानिए क्लाउड सीडिंग क्या है, कैसे काम करती है, इसके फायदे, नुकसान, सेहत पर असर और क्यों दिल्ली में कृत्रिम बारिश की जा रही है।
क्लाउड सीडिंग क्या है?
क्लाउड सीडिंग एक मौसम परिवर्तन (Weather Modification) तकनीक है, जिसका उद्देश्य बादलों से कृत्रिम वर्षा कराना होता है।
यह तकनीक ऐसे बादलों में बर्फ या रासायनिक कण डालकर उन्हें वर्षा के लिए प्रेरित करती है, जिनमें पहले से नमी होती है लेकिन वे वर्षा नहीं कर पा रहे होते।
बादल वास्तव में पानी की सूक्ष्म बूंदों या बर्फ के क्रिस्टलों से बने होते हैं। जब इन बूंदों के आसपास संघनन नाभिक (Condensation Nuclei) मौजूद होते हैं, तभी जलवाष्प ठंडी होकर बारिश बनाती है। यही प्रक्रिया क्लाउड सीडिंग के ज़रिए कृत्रिम रूप से तेज की जाती है।
⚙️ क्लाउड सीडिंग कैसे काम करती है?
क्लाउड सीडिंग की प्रक्रिया में विमानों, हेलीकॉप्टरों या ज़मीनी जनरेटरों की मदद से सिल्वर आयोडाइड (AgI), पोटैशियम आयोडाइड (KI) या ड्राई आइस (CO₂) को बादलों में छोड़ा जाता है।
ये रसायन बर्फ के कणों के नाभिक की तरह काम करते हैं, जिनके चारों ओर जलवाष्प जमकर बड़े-बड़े हिमकण या पानी की बूंदें बना देती है।
कुछ देर बाद ये भारी होकर नीचे गिरती हैं और बारिश या बर्फबारी के रूप में पृथ्वी पर आती हैं।
✈️ क्लाउड सीडिंग की तकनीकें
| प्रकार | विवरण | उपयोग किए जाने वाले पदार्थ |
| Static Cloud Seeding | बादलों में स्थायी नाभिक बनाकर वर्षा को प्रेरित करना | सिल्वर आयोडाइड |
| Dynamic Cloud Seeding | वायु प्रवाह को तेज कर बादलों की नमी बढ़ाना | सिल्वर आयोडाइड |
| Hygroscopic Seeding | नमक कणों का उपयोग कर बड़ी बूंदें बनाना | सोडियम क्लोराइड, पोटैशियम क्लोराइड |

🌍 कहां-कहां होती है क्लाउड सीडिंग
क्लाउड सीडिंग का प्रयोग 50 से अधिक देशों में हो रहा है —
- 🇮🇳 भारत: राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र
- 🇨🇳 चीन: बीजिंग ओलंपिक से पहले वायु प्रदूषण कम करने के लिए
- 🇦🇪 यूएई: सूखे क्षेत्रों में नियमित कृत्रिम वर्षा
- 🇺🇸 अमेरिका: कैलिफोर्निया, नेवादा और कोलोराडो में जल संरक्षण के लिए
📊 वैज्ञानिक आंकड़े
- विश्व में क्लाउड सीडिंग से वर्षा में 10%–30% तक की वृद्धि संभव बताई गई है।
- ऑस्ट्रेलिया के स्नोई पर्वतों में एक 5-वर्षीय अध्ययन में 14% तक बर्फबारी बढ़ी।
- व्योमिंग (अमेरिका) में क्लाउड सीडिंग से 5–15% अधिक हिम संचयन दर्ज हुआ।
- भारत में आईआईटी कानपुर और आईआईटीएम पुणे ने भी सफल प्रयोग किए हैं।
🌦️ क्लाउड सीडिंग के प्रमुख लाभ
- कृषि को राहत: सूखे क्षेत्रों में फसलों के लिए नमी बढ़ाता है।
- जल संरक्षण: बांधों, झीलों और नदियों में जलस्तर बढ़ाता है।
- वायु प्रदूषण नियंत्रण: प्रदूषण के कण नीचे बैठ जाते हैं।
- ओलावृष्टि और कोहरा नियंत्रण: हवाई यातायात को सुरक्षित बनाता है।
- हाइड्रोपावर उत्पादन: जल प्रवाह बढ़ने से बिजली उत्पादन में मदद।
⚠️ क्लाउड सीडिंग की सीमाएं और नुकसान
- 💰 महंगी प्रक्रिया: 1 वर्गफीट बारिश कराने की लागत लगभग ₹15,000 तक।
- उदाहरण: कर्नाटक में दो साल के क्लाउड सीडिंग प्रोजेक्ट की लागत ₹89 करोड़।
- 🌫️ सफलता निश्चित नहीं: केवल उन बादलों में संभव है जिनमें नमी हो।
- 🧪 रासायनिक अवशेष: सिल्वर आयोडाइड अधिक मात्रा में पर्यावरण को प्रभावित कर सकता है।
- 🌧️ जल चक्र पर असर: एक क्षेत्र में वर्षा बढ़ने से दूसरे क्षेत्र में कमी संभव।
- ✈️ सुरक्षा जोखिम: आबादी वाले क्षेत्रों में हवाई प्रयोगों से खतरा।
🩺 स्वास्थ्य पर प्रभाव
- कम विषाक्तता, परंतु बार-बार प्रयोग से सांस और त्वचा पर असर संभव।
- सिल्वर आयोडाइड या अन्य रसायनों के सूक्ष्म कण अस्थमा या एलर्जी बढ़ा सकते हैं।
- प्रदूषित वर्षा जल पीने से पानी की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है।
सावधानी:
👉 क्लाउड सीडिंग के दौरान और तुरंत बाद बाहरी गतिविधियों से बचें।
👉 पानी पीने से पहले उसे फ़िल्टर या उपचारित करें।
👉 अगर फेफड़ों की बीमारी है, तो डॉक्टर की सलाह लें।

🏙️ दिल्ली में क्लाउड सीडिंग क्यों?
दिल्ली सरकार ने बढ़ते वायु प्रदूषण से राहत पाने के लिए 29 अक्टूबर 2025 को पहली बार क्लाउड सीडिंग का निर्णय लिया है।
इस परियोजना में आईआईटी कानपुर और मौसम विभाग शामिल हैं।
मुख्य उद्देश्य है —
- वायु में मौजूद प्रदूषण कणों को नीचे बैठाना।
- वायु गुणवत्ता (AQI) में सुधार लाना।
- सर्दियों में स्मॉग और सांस की बीमारियों को कम करना।
🧠 दिलचस्प तथ्य
- क्लाउड सीडिंग तकनीक 1945 में अमेरिका में विकसित हुई थी।
- भारत ने तमिलनाडु (1983–94) और कर्नाटक (2003–04) में प्रयोग किए।
- यूएई में AI-आधारित ड्रोन सीडिंग सिस्टम का उपयोग किया जा रहा है।
🌈 भविष्य की दिशा
भविष्य में क्लाउड सीडिंग को जल संकट, कृषि, और प्रदूषण नियंत्रण के लिए रणनीतिक हथियार माना जा सकता है।
परंतु यह प्राकृतिक समाधान नहीं, बल्कि एक पूरक तकनीक है —
जो तभी सफल है जब हम प्राकृतिक जल संरक्षण, वृक्षारोपण और प्रदूषण नियंत्रण पर भी ध्यान दें।
🌦️ निष्कर्ष
क्लाउड सीडिंग कोई जादू नहीं, बल्कि विज्ञान की वह कला है जो प्रकृति की मदद से बारिश कराती है।
यह तकनीक तब तक प्रभावी है जब तक इसे जिम्मेदारी और वैज्ञानिक निगरानी के साथ अपनाया जाए।
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