Zero-Based Budgeting: हर रुपये पर रखिए पूरा नियंत्रण

क्या आपने कभी सोचा है कि हर महीने आपकी कमाई कहाँ चली जाती है? आप अच्छी-खासी सैलरी कमाते हैं, बिल भरते हैं, किराना खरीदते हैं, कभी डिनर या मूवी पर जाते हैं और अचानक बैंक बैलेंस लगभग शून्य हो जाता है। यह आम समस्या कमाई की कमी नहीं है, बल्कि इस बात की है कि हर रुपये की सही प्लानिंग नहीं होती।
Zero-Based Budgeting (ZBB) एक आसान और असरदार तरीका है जिससे आप अपनी हर कमाई पर नियंत्रण रख सकते हैं। ZBB में हर रुपये को एक उद्देश्य दिया जाता है। यानी आपकी आय – खर्च = शून्य हो जाती है महीने के अंत तक। हर रुपया आपके लिए काम करता है, चाहे वह ज़रूरी खर्च, बचत, निवेश या मौज-मस्ती में जाए।
Zero-Based Budgeting क्या है?
Zero-Based Budgeting वह तरीका है जिसमें आपकी हर आय को महीने शुरू होने से पहले ही किसी उद्देश्य के लिए तय कर दिया जाता है। पारंपरिक बजटिंग की तरह यहाँ बचत “जो बचे” नहीं होती, बल्कि पहले से तय होती है।
सोचिए आपकी आय एक टीम है और आपके खर्च काम हैं। हर कर्मचारी (रुपया) को एक काम मिलना चाहिए। अगर कोई खाली है, तो आपके वित्तीय लक्ष्य धीमे हो जाएंगे।
उदाहरण: अगर आप ₹50,000 कमाते हैं तो ZBB आपको मदद करता है:
- ₹20,000 किराया
- ₹5,000 EMI
- ₹15,000 बचत
- ₹10,000 अन्य खर्च
हर रुपया एक काम में लग गया।
Step-by-Step Guide to Zero-Based Budgeting
Step 1: अपनी मासिक आय निकालें
सभी आय स्रोत जोड़ें:
- वेतन (टैक्स के बाद)
- फ्रीलांस या साइड हसल की कमाई
- गिफ्ट, भत्ता या किराया आय
उदाहरण:
- वेतन: ₹45,000
- फ्रीलांस: ₹5,000
- कुल आय: ₹50,000
Step 2: सभी खर्चों की सूची बनाइए
खर्चों को अलग-अलग श्रेणियों में बाँटें:
- ज़रूरी (Needs): किराया, किराना, बिजली-पानी, ट्रांसपोर्ट
- कर्ज़ भुगतान: EMI, क्रेडिट कार्ड बिल
- बचत व निवेश: आपातकालीन फंड, SIP, PPF, FD
- इच्छाएँ (Wants): मूवी, बाहर खाना, शॉपिंग, शौक
- अनियमित खर्च: गिफ्ट, कार मेंटेनेंस, मेडिकल बिल
उदाहरण:
- किराया: ₹12,000
- किराना: ₹6,000
- बिजली-पानी: ₹2,000
- ट्रांसपोर्ट: ₹2,000
- EMI: ₹5,000
- SIP: ₹10,000
- मौज-मस्ती: ₹7,000
- अनियमित: ₹6,000
- कुल = ₹50,000
Step 3: हर रुपये को काम दीजिए
ZBB का मूल नियम है – हर रुपये को एक उद्देश्य दें।
उदाहरण:
- ज़रूरी: ₹20,000
- कर्ज़: ₹5,000
- बचत व निवेश: ₹15,000
- मौज-मस्ती: ₹7,000
- अनियमित: ₹3,000
अब पूरे ₹50,000 का हिसाब हो गया। यहाँ तक कि ₹50 चाय पर खर्च भी “डिस्क्रेशनरी स्पेंडिंग” में शामिल होगा।
Step 4: अपने खर्च ट्रैक कीजिए
आजकल मोबाइल ऐप्स से ZBB आसान हो गया है। Paytm, Google Pay, PhonePe, Walnut, Money View जैसे ऐप अपने-आप आपके खर्च रिकॉर्ड कर लेते हैं।
उदाहरण:
- आपने Google Pay से ₹200 कॉफी पर खर्च किए → ऐप इसे “Food & Drinks” में जोड़ देगा।
- हफ़्ते का सारांश दिखेगा: ₹3,500 किराना, ₹1,200 ट्रांसपोर्ट, ₹1,000 एंटरटेनमेंट।
छोटे, आसान उदाहरण
- कॉफी की आदत: ₹50 रोज़ाना = ₹1,500 महीने। इसे “मस्ती” में डालें।
- मूवी नाइट: ₹500 का बजट रखें। खर्च न हो तो बचत में जोड़ें।
- कार रिपेयर: हर महीने ₹2,000 अनियमित खर्च में रखें।
- कपड़े शॉपिंग: ₹2,000 तय करें। ज़्यादा खर्च हो तो अगले महीने एडजस्ट करें।
- गैजेट खरीदना: नया स्मार्टफोन ₹30,000 → 6 महीने तक ₹5,000 बचाइए।
Zero-Based Budgeting के फायदे
- पूरी पकड़: पता रहेगा पैसा कहाँ जा रहा है।
- बेकार खर्च से बचाव: आवेग में खरीदारी कम होगी।
- बचत प्राथमिकता: खर्च से पहले बचत तय।
- तेज़ लक्ष्य पूरे: कर्ज़ चुकाना, आपातकालीन फंड बनाना, निवेश।
- अनुशासन: हर रुपये का हिसाब रखने से जागरूकता बढ़ती है।
- तनाव कम: पैसों की चिंता नहीं रहती।
वास्तविक उदाहरण
रवि, एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर, ₹40,000 कमाता था और बेतरतीब खर्च करता था। ZBB अपनाने और Paytm से ट्रैक करने के बाद:
- ज़रूरी: ₹18,000
- EMI: ₹5,000
- SIP व इमरजेंसी फंड: ₹10,000
- मस्ती: ₹5,000
- अनियमित खर्च: ₹2,000
रवि ने एक साल में ₹1.2 लाख बचा लिए।
Zero-Based Budgeting में सफल होने के टिप्स
- सिंपल शुरू करें: पहले मुख्य श्रेणियाँ बनाइए।
- बचत ऑटोमैटिक करें: SIP, FD, RD से।
- नियमित ट्रैक करें: रोज़ या हफ़्ते में।
- हर महीने अपडेट करें: ज़िंदगी बदलती है तो बजट भी बदले।
- लचीलापन रखें: अगर एक जगह ज़्यादा खर्च हो तो दूसरी जगह कम करें।
निष्कर्ष
Zero-Based Budgeting केवल एक बजटिंग तरीका नहीं, बल्कि एक वित्तीय आदत है। हर रुपये को काम देकर आप अपने पैसे पर नियंत्रण पाते हैं, बेकार खर्च रोकते हैं, लगातार बचत करते हैं और तेज़ी से लक्ष्य हासिल करते हैं।
“अगर आप अपने पैसे को यह नहीं बताएँगे कि उसे कहाँ जाना है, तो वह कहीं और गायब हो जाएगा।”



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